संस्कृत विभाग का बड़ा ही समृद्ध एवं स्मरणीय इतिहास रहा है। यहाँ के अध्येता आज भारत के बड़े संस्थानों में अध्ययन के साथ-साथ विभिन्न पदों पर आसीन होकर संस्कृत वाङ्मय की गौरवपूर्ण एवं वैभवशाली परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।
जालौन जनपद ही नहीं समूचे बुन्देलखण्ड के गौरव की साक्षात् प्रतिमूर्ति इस महाविद्यालय का श्रीगणेश सन् 1951 में हुआ। सामान्य अंग्रेजी, हिन्दी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र विषयों के साथ विभागों का गठन होकर स्नातक कक्षाओं का शुभारम्भ हुआ। 5-6 वर्षों के बाद 1957 ई ० में संस्कृत विभाग की स्थापना हुई और संस्कृत साहित्य की कक्षाएं प्रारम्भ हुईं इस प्रकार कक्षाओं के साथ-साथ शोधकार्य अबाधगति से आज भी संचालित हो रहा है। संस्कृत विभाग आगामी काल में विद्यार्थियों को निरन्तर गतिमान् एवं शैक्षिक रूप से समृद्ध करने के लिए पूर्ण संकल्पित है।

1. प्रो0 रक्षाकर दत्त -
संस्कृत वाङ्मय के दर्शनशास्त्र के विद्वान् व्यक्तित्व प्रो० रक्षाकर दत्त ने संस्कृत विभाग की स्थापना के बाद सर्वप्रथम विभाग के अध्यक्ष का पद सम्भाला। दत्ता जी एक देशभक्त एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। वे स्वतन्त्रता संग्राम आन्दोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहे तथा उन्होंने भारत की स्वतन्त्रता के लिए जेल जाने में भी संकोच नहीं किया। गांधी जी के सच्चे अनुयायी होने के कारण आजीवन खादी के वस्त्रों का प्रयोग करते रहे और समाज तथा स्वदेशी व्यवस्था के लिए एक अनुकरणीय अवदान दिए। संस्कृत विभाग के प्रथम अध्यक्ष प्रो0 दत्ता जी की शैक्षिक उपलब्धियां इस प्रकार हैं -
1. कलकत्ता विश्वविद्यालय से संस्कृत, दर्शनशास्त्र तथा आधुनिक भारतीय भाषायें इन तीन विषयों में प्रथम श्रेणी में परास्नातक परीक्षा पास की।
2. आप षड्दर्शन शास्त्री तथा काव्य व्याकरणतीर्थ की उपाधि से अलंकृत थे।
3. कलकत्ता विश्वविद्यालय मिदनापुर, श्रीरामपुर तथा चन्द्रनगर में आपने अध्यापन कार्य किया।
4. 1957 से सेवानिवृत्ति सन् 1976 तक डी०वी कालेज में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहे।
5. अकादमिक दायित्व में आप कलकत्ता, आगरा एवं कानपुर विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम समिति, शोध उपाधि समिति के सदस्य रहे।
6. प्रो० रक्षाकर दत्त सन् 1976 में सेवानिवृत्त हुए।

2. डॉ. पूरन सिंह निरंजन -
प्रो० रक्षाकर दत्त के कार्यकाल में ही डॉ0 पूरन सिंह निरंजन सन 1974 में अस्थाई रूप से संस्कृत विभाग में प्रवक्ता पद पर आसीन हुए और 02 साल बाद 1976 में स्थाई रूप से नियुक्त हुए।
1. आप हिन्दी, संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा के भी ज्ञाता रहे साथ ही संस्कृत नाट्य-साहित्य के विशेषज्ञ विद्वान् के रूप में अपने कार्य किया।
2. दत्त जी की सेवानिवृत्ति के पश्चात् आपने विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया।
3. आपने पूना विश्वविद्यालय से 1985 में पीएच्0डी0 की उपाधि ग्रहण की। अंग्रेजी में लिखे आपके शोधप्रबन्ध का विषय था - The Rupakashatkam of vatsaraj : A Cultural Study.
4. डॉ० निरंजन के निर्देशन में विभाग में 08 छात्रों ने शोधकार्य किया और विद्या-वारिधि (पीएच्0डी0) की उपाधि प्राप्त की। आप 39 वर्षों तक विभाग में कार्य करते हुए सेवानिवृत्त हुए।
5. आप बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी में R.D.C & Board of studies के सदस्य रहे तथा 2013 में सेवानिवृत्त हुए।

3. श्रीमती कान्ति श्रीवास्तव -
डॉ0 पूरन सिंह निरंजन के कार्यकाल के साथ ही श्रीमती कान्ति श्रीवास्तव ने प्रो० दत्ता जी की सेवानिवृत्ति के बाद उन्हीं के रिक्त पद पर 09 सितम्बर 1976 को विभाग में कार्यभार ग्रहण किया एवं डॉ0 निरंजन की सेवानिवृत्ति के पश्चात् विभागाध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन किया।
श्रीमती कान्ति श्रीवास्तव डी०वी० कॉलेज के इसी संस्कृत विभाग की स्नातक रहीं हैं और दत्ता जी आपके गुरु के रूप में रहे। इसी विभाग में अध्ययन कर नियुक्त होना निश्चित रूप से उनके लिए सौभाग्य का विषय रहा। आपने परास्नातक 1976 में किया था।
श्रीमती कान्ति श्रीवास्तव सर्वप्रथम काॅलेज से शुरु होने वाले NSS की प्रोग्राम आॅफीसर रहीं। आपने गांवों में कैम्प लगाकर सफाई तथा शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न जानकारियां देकर छात्राओं के द्वारा ग्रामीण महिलाओं को जाग्रत किया। साथ ही आप वीमेन सेल की सक्रिय सदस्य रहीं और 2014 में सेवानिवृत्त हुईं।

4. डॉ० सर्वेश कुमार शाण्डिल्य -
श्रीमती कान्ति श्रीवास्तव की 2014 में सेवानिवृत्ति के बाद सितम्बर 2018 तक पूर्णकालिक प्राध्यापक ना होने के कारण विभागीय शैक्षणिक गतिविधियाँ लगभग प्रभावित रहीं।
संस्कृत विभाग में दिनांक 01 अक्टूबर 2018 को असिस्टेण्ट प्रोफेसर के पद पर डॉ० सर्वेश कुमार शाण्डिल्य की नियुक्ति हुई। जो मूलतः इसी जालौन जनपद के ग्राम जैसारी कलां के निवासी हैं। आप बचपन से ही विशाल संस्कृत साहित्य के पारम्परिक एवं आधुनिक अध्ययन के लिये वाराणसी रहे। वृन्दावन से माध्यमिक शिक्षा उत्तीर्ण की, इसके बाद वाराणसी से स्नातक के साथ आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के कला संकाय से 2013 में M.A. (Gold Medalist) संस्कृत साहित्य, NET/JRF एवं वर्ष 2019 में आपने शोधकार्य (Ph.D) किया।
डॉ० शाण्डिल्य के 10 शोधपत्र, 03 बुक चैप्टर/प्रोसीडिंग आर्टिकल प्रकाशित हो चुके हैं। आपने 23 सेमिनार और सम्मेलनों में अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये हैं। इसके साथ ही 15 FDP/Workshop में प्रतिभाग किया।
आप 01 Faculty Indution Programme और 01 Refesher Course (Sanskrit) को भी पूर्ण कर चुके हैं। साथ ही “शोधधारा“ रिसर्च जर्नल के सम्पादक मण्डल में विषय-विशेषज्ञ के रूप में अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। 03 शोधसंगोष्ठी को भी आप आयोजित कराने में सचिव/सदस्य चुके हैं। वर्तमान में आप विभाग प्रभारी के रूप में पुनः द्रुतगति से विभाग को समृद्ध करने का कार्य कर रहे हैं।
डॉ० शाण्डिल्य अकादमिक दायित्वों में विभिन्न समितियों के सदस्य भी हैं जिनमें कॉलेज की वार्षिक पत्रिका "अभिनव ज्योति" के सह सम्पादक, NAAC समिति सदस्य, न्यूज बुलेटिन सह सम्पादक, प्रतिभा सम्मान समारोह प्रभारी, बी०ए० प्रथम वर्ष प्रवेश समिति सदस्य, यूजीसी समन्वय समिति सदस्य के साथ ही और भी 4-5 समितियों में सदस्य के रूप में अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।

Vision & Mission

जयतु संस्कृतम् जयतु भारतम्

‘‘संस्कृतं पठ, आधुनिको भव’’।

अर्थात् - संस्कृत पढें, आधुनिक बनें।
आज के युग में संस्कृत के आदर्शों को आधार बनाकर आधुनिक बनना अधिक श्रेयस्कर है।

दयानन्द वैदिक कॉलेज उरई का संस्कृत विभाग वर्ष 1957 से ही अपने स्वर्णिम अतीत एवं संस्कृत भाषा एवं साहित्य के उत्कर्ष की उत्कट कामना के साथ साम्प्रतिक अपार सम्भावनाओं को दृष्टिगोचर करते हुए सतत अग्रगामी है।
सत्र 2018-19 में विभाग में 03 विद्यार्थियों की अपेक्षा आज विगत 05 सत्रों में ही बी.ए. (स्नातक) कक्षा में 160 से ज्यादा संस्कृत साहित्य के विद्यार्थियों की संख्या होना विभाग के लिए निश्चित रूप से गौरव का विषय है। विभाग में पंजीकरण की दृष्टि से 2022-23 बी.ए. प्रथम वर्ष में संस्कृत साहित्य पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या 100 का आंकड़ा छू गई और 101 विद्यार्थियों ने बी.ए. प्रथम सेमेस्टर में संस्कृत साहित्य को मेजर विषय के रूप में स्वीकार किया जोकि विभाग की अजस्र प्रगति का साक्षात् निदर्शन है।

दृष्टि -
1. भारत को ‘‘विश्वगुरु‘‘ के पद पर पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए वैश्विक पटल पर संस्कृत शिक्षा की गरिमा एवं अनिवार्यता को स्थापित करने के दृष्टिकोण से ‘‘दयानन्द वैदिक कॉलेज उरई, जालौन’’ के संस्कृत विभाग को केवल बुन्देलखण्ड क्षेत्र ही नहीं अपितु उ0प्र0 एवं सम्पूर्ण भारतवर्ष में स्तरीय उच्चशिक्षा संस्थान के रूप में परिवर्तित करना।
2. संस्कृत साहित्य का मिशन मानवतावाद, एकता, मानव जाति, व्यक्ति और समाज के सामंजस्यपूर्ण विकास में से एक है।
3. प्राचीन भारतीय विरासत का असीमित अमूल्य ज्ञान आधुनिक रीति/पद्धति से प्रदान करना।
4. प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों के बीच एक पुल का निर्माण करने के लिए आधुनिक परिप्रेक्ष्य के साथ प्राचीन विज्ञानों और प्रौद्योगिकियों का अन्वेषण करना।
5. संस्कृत साहित्य एवं वैदिक साहित्य के अन्तःविषयक क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करना।
6. विद्यार्थियों को अच्छा नागरिक एवं नैतिकता सम्पन्न व्यक्तित्व बनाने के लिए शिक्षित करना।
7. छात्रों को एक सफल और स्वाभिमानपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करना।

लक्ष्य -
1. संस्कृत साहित्य की विशाल ज्ञानपरम्परा पर आधारित शिक्षण एवं शोध के माध्यम से नवीनतम ज्ञान के लिए डी.वी. कॉलेज उरई को एक मंच के रूप में तैयार करना।
2. आधुनिक रूप से प्रासंगिक क्षेत्रों में भारतीय ज्ञानपद्धति को बढ़ावा देना।
3. शिक्षा की मुख्यधारा में संस्कृत को एक बडे़ माध्यम के रूप में स्थापित करना ।
4. संस्कृत वाङ्मय के विज्ञान एवं विश्वबन्धुत्व को आधुनिक शिक्षा जगत् के साथ जोड़ना।
5. विशाल संस्कृत वाङ्मय को बहुविषयक अनुसंधान का सर्वग्राह्य तथा जीवन्त क्षेत्र बनाना।
6. जैसा भी उचित समझा जाए, संस्कृत भाषा और सीखने की ऐसी अन्य शाखाओं को बढ़ावा देने के लिए शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार सुविधाएं प्रदान करके ज्ञान का प्रसार करना और आधुनिकतम बनाना ।
7. शिक्षण तथा सीखने की प्रक्रिया और अनुशासनात्मक अध्ययन और अनुसंधान में नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए उचित उपाय करना।
8. संस्कृत पारम्परिक विषयों के क्षेत्र में समग्र विकास, संवर्धन, संरक्षण और अनुसंधान के लिए मानव शक्ति को शिक्षित और प्रशिक्षित करना।
9. सरल मानक संस्कृत, संस्कृत सम्भाषण के व्यावहारिक क्रियाकलाप के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना। जैसे- संस्कृत सम्भाषण शिविर, सायंकालीन शिक्षा व्यवस्था आदि.......
10. भाषा कौशल, गुणवत्तापूर्ण शिक्षण, पराम्परागत शास्त्रों का शिक्षण और संरक्षण तथा भारतीय ज्ञानपरम्परा को केन्द्रित कर कॉलेज में शिक्षण एवं अनुसन्धान कार्य को बढ़ावा देना।
11. प्राचीन वैज्ञानिक अंशों के ऊपर अध्ययन, आधुनिक शिक्षाक्षेत्र में नवीन आयामों का कार्यशाला, संगोष्ठी और सम्मेलनों के माध्यम से प्रचार-प्रसार करना।
12. संस्कृत मे अनुवाद को प्रोत्साहित करना।
13. संस्कृत की नवीन शिक्षण विधियों का विकास करना।
14. संस्कृत में आधुनिक अनुसंधान पद्धति का विकास करना।
15. वाल्मीकि रामायण जैसे महान् महाकाव्यों को लोकप्रिय बनाना और इंटरनेट के माध्यम से विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में महाभारत और पुराण जैसे ग्रन्थों को सुलभ बनाना।
16. पारम्परिक शास्त्रों को बढ़ावा देना और समकालीन समाज में उनकी प्रासंगिकता दिखाना। संस्कृत प्रचार - विज्ञान शिक्षा 1. संस्कृत - विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन ।
17. संस्कृत-विज्ञान गठजोड़ पर शोध करना।
18. संस्कृत विज्ञान पर संगोष्ठियों, सम्मेलनों और कार्यशालाओं का आयोजन।
19. भारतीय विरासत, परम्परा और संस्कृति का संरक्षण ।
16. पुस्तकालय के माध्यम से पांडुलिपियों का व्यापक सर्वेक्षण, संग्रह और संरक्षण और महत्वपूर्ण संस्करण प्रकाशित करना।
17. मानव चेतना और यौगिक विज्ञान पर अनुसंधान को तीव्र करना।
18. संस्कृत सीखने वाले छात्रों को भारत के सांस्कृतिक दूतों में ढ़ालना।

Opportunities

  • विशाल संस्कृत वाङ्मय के अध्ययन के बाद आय के विभिन्न स्रोतों के प्रति विद्यार्थी को प्रेरित एवं तैयार करना। अध्ययन के बाद विभिन्न अवसर यहां द्रष्टव्य हैं - 1. केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली से स्कॉलरशिप की प्राप्ति 2. सरकारी क्षेत्र में प्रशासनिक सेवा के रूप में 3. प्राथमिक अध्यापक के रूप में 4. प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक के रूप में 5. व्याख्याता के रूप में 6. सहायक प्रवक्ता के रूप में 7. अनुसन्धान सहायक के रूप में 8. सेना में धर्मगुरु के रूप में 9. अनुवादक के रूप में 10. योग शिक्षक के रूप में 11. पत्रकार के रूप में 12. सम्पादक के रूप में 13. लिपिक के रूप में 14. तकनीक की जानकारी एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का अध्ययन रोजगार के नए-नए अवसर निजी एवं सामाजिक क्षेत्र में लेखक के रूप में 15. ज्योतिषी के रूप में 16. आकाशवाणी समाचार लेखक, ऐंकर, अनुवादक के रूप में 17. संस्कृत न्यूज ऐंकर 18. सचिवालय सरकारी भाषा विशेषज्ञ 19. आयुर्वेदिक चिकित्सक के वैद्य प्राकृतिक चिकित्सक 20. वास्तु सलाहकार के रूप में 21. पुरोहित के रूप में 22. कथा प्रवाचक उपदेशक के रूप में 23. शिक्षाशास्त्री के रूप में 24. समाजशास्त्री और दार्शनिक के रूप में 25. समाज सुधारक के रूप में 26. समाज एवं राजनीतिक क्षेत्र में अवसर 27. नेता के रूप में 28. अन्वेषक के रूप में 29. उद्योगपति के रूप में 30. फैमिली एडवाइजर के रूप में 31. सरकार द्वारा दूतावासों में सांस्कृतिक राजदूत के रूप में 32. प्रबन्धन के क्षेत्र में कुशल प्रबन्धक के रूप में
5
Faculties
58
Faculty Members
23
Programmes
51
Non-Teaching Staff
3000
Students
3
Student Centric Activities